देवांगना--आचार्य चतुरसेन शास्त्री

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15. एकान्त मिलन : देवांगना वैसा ही मनोरम प्रभात था। दिवोदास उसी पुष्करिणी के तीर पर उसी वृक्ष की छाया में बैठा, निर्मल जल में खेलती लहरों को देख रहा था। ...

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